तुम‬ ‪झूठे‬ ‪साबित‬ ‪‎हुए

तुम मानते थे कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केंद्र है,
तुम झूठे साबित हुए।
तुम मानते थे कि दास-प्रथा नैसर्गिक है,
तुम झूठे साबित हुए।
तुम मानते थे कि जन्म से कोई ब्राह्मण है,

होता है, जन्म से होता कोई शुद्र 
तुम कपटी साबित हुए।
तुम मानते थे कि ज्ञान का अधिकार सिर्फ तुम्हें है,
तुम षड़यंत्र करने वाले साबित हुए।
तुम मानते थे कि स्वर्ग और नरक होता है,
तुम झूठे साबित हुए।
तुम मानते हो कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता। 
इसलिए इन्तेजार करोतुम झूठे साबित होने का।
तुम मानते हो कि किस्मत में जो लिखा होता हैवही होता है।
एकदिन तुम मुर्ख करार दिए जाओगे।
तुम मानते हो कि पूजा करने से और मूर्ति के समक्ष
सर झुकाने सेतथाकथित ईश्वर को घूस देने सेतुम्हारा हित होगा।
एकदिन तुम बेतुके समझे जाओगे।
तुम मानते हो कि ईश्वरीय मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता,
एकदिन बेवकूफ करार दिए जाओगे।
क्योंकि धर्म मूलतः अंध-विश्वास और बिना तर्क किये भक्ति सीखाता है।
विज्ञान तर्क सीखता है। विज्ञान विश्वास करने को नहीं कहता।
वह चुनौती देता हैपरीक्षण करने कीअन्वेषण करने की।
शक करने की और प्रयोग करने की।
धर्म इनसे भागता है। वह कुतर्क करता है। धमकी देता है। लालच सीखाता है।
दास बनाता है। चुनौती देने पर कुटिलता अपनाता है। दंगे करवाता है।
कान में पिघला सीसा भरने की बात करता है।
वह दोजख में जाने को डराता है। बैतरनी में कष्ट भोगने की बात करता है।
नहीं मानने पर काफिरधर्म-भ्रष्टनास्तिक और जाने क्या-क्या कहता है।
जो भी हो तुम्हारा समूल नष्ट होना तय है। क्योंकि तुम अंधकार का प्रतिनिधित्व करते हो।
हम प्रकाश की बात करते है। तुम टिक नहीं सकते हमारे वजूद के सामने।
बस इंतज़ार करो अपने मिटने का । क्योंकि इंसानी दिमाग अनुभव से ही तुष्ट होता है। तर्क से ही संतुष्ट होता है। तो इंतज़ार करो ओ अँधेरा और रहस्य का प्रतिनिधित्व करने वालेअँधेरा और रहस्य में ही मिट जाने के लिए।

– शेषनाथ वर्णवाल 
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