क्या यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का अपमान है?

तस्वीर इंडिया.कॉम से साभार 
भारत का इतिहास खुद में कई उथल पुथल और संघर्षों को समेटे हुए है। यहाँ प्राचीन काल से ही मानवों के कई समूह कई उदेश्यों से आये। कुछ यहीं के होकर रह गए और कुछ अपनी स्वार्थ पूरी कर लौट गए। खिलजी यहाँ आकर शासक बने। कहा जाता है कि अल्लाउद्दीन खिलजी के साथ पद्मावती की कहानी काल्पनिक है। पर भारत में यह कहानी जौहर और मुस्लिम क्रूरता के लिए प्रचार पता गया।
कुछ लोग इसे हिन्दू मुसलमान के चश्में से देखते हैंतो कुछ लोग जौहर को क्रूर प्रथा के साथ हिन्दू धर्म-संस्कृति की आलोचना करते हैं। खिलजी के पद्मावती के लिए आकर्षण को मुस्लिम का हिन्दू के प्रति ईज्ज़त लुटने की कोशिश की तरह समझा जाता है। ऐसे में इस विषय पर फिल्म बनानाबेशक मुफ्त के प्रचार का लाभ लिए हैपर उसके खतरे भी हैं।
संजय लीला भंसाली के द्वारा फिल्म बनाने पर इसका सेंसर बोर्ड में भेजना और उसका वहां से उसपर किसी प्रतिक्रिया का होना कानून सम्मत होना हैपर किसी करनी सेना द्वारा अथवा दुसरे हिन्दू उग्र संगठनों के द्वारा इसको लेकर विवाद करना और हिंसा की हद तक जानाभारतीय लोकतंत्र के लिए चुनौती और खतरा है।
वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था भी उग्र संगठनों पर नकेल कसने में नाकाम हो रही है अथवा जानबूझकर एक संप्रदाय विशेष को तुष्ट करने की कोशिश कर रही हैजिसका फायदा चुनाव में उठाया जा सके। इन सब के बीच में बड़ा सवाल है कि कोई कलाकार अपनी बात देश समाज के बीच कैसे रखेक्या उसको अपनी बात को रखने की आज़ादी नहीं है
कौन तय करेगा कि क्या कलाकार की स्वतंत्रता है और क्या संस्कृति और इतिहास का अपमानदेखा जाय तो आधुनिक विश्व में संवैधानिक और लोकतान्त्रिक व्यवस्थायें ही हैं जो कानून और संवैधानिक संस्थाओं के माध्यम से किसी कृत्य या कला का नियमन करती है।
ऐसे में भारत में ऐसी संस्थाओं का निर्माण किया गया है। यदि उन संस्थाओं के द्वारा किसी कला के विषय पर सवाल किया जाता है तो इसे गलत नहीं कहा जा सकतापर उग्र गुंडों द्वारा हिंसा द्वारा भारतीय संविधान प्रदत कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करना खतरनाक प्रवृति है। वर्तमान सरकार को उसपर ख़ामोशी लोकतंत्र के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला की तरह समझा जाना चाहिए जिसके खतरनाक परिणाम हो सकते हैं।
शेषनाथ वर्णवाल
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